Current Affairs Today- भारत में राजद्रोह कानून
राजद्रोह कानून या Sedition Law क्या होता है?
इस आर्टिकल में हम पढ़ेंगे राजद्रोह कानून क्या है? भारत में राजद्रोह कानून की आवश्यकता ? व राजद्रोह कानून की क्या सीमाएं हैं?
राजद्रोह कानून भारत की संसद द्वारा पारित एक अलग अधिनियम नहीं है बल्कि यह भारतीय दंड संहिता का एक भाग है जिसका उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में किया गया है, यह 152 साल पुराना औपनिवेशिक कानून है जिसे 1870 में अंग्रेजो के द्वारा बनाया गया था।
IPC के Section 124A के अनुसार राजद्रोह की परिभाषा
यदि कोई व्यक्ति, बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों के द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना या असंतोष उत्पन्न करेगा तो उसे राजद्रोह के लिए आरोपी बनाया जा सकता है।
ऊपर लिखे गए असंतोष शब्द में निष्ठा हीनता तथा शत्रुता की सभी भावनाओं को शामिल किया गया है।
राजद्रोह भारत में एक गैर जमानती अपराध है जिसमें 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा जुर्माने के साथ या जुर्माने की बिना हो सकती है।
आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी से रोक दिया जाता है व आरोपी का पासपोर्ट भारत सरकार द्वारा जब्त कर दिया जाता है।
भारत में राजद्रोह कानून का इतिहास
भारत में राजद्रोह कानून का इतिहास 152 साल पुराना है, जिसे पहली बार 1870 में थॉमस मैकाले द्वारा प्रस्तुत किया गया था, गौरतलब है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 में बनी थी उस समय राजद्रोह को इसमें सम्मिलित नहीं किया गया था।
राजद्रोह कानून को बनाने के तत्कालीन प्राथमिक उद्देश्य
राजद्रोह कानून का तत्कालीन प्राथमिक उद्देश्य भारत में बढ़ती वहाबी गतिविधियों ( Wahabi Activities) से निपटना था, इसके साथ ही राजनीतिक असंतोष को रोकने के लिए इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया।
बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट, शौकत और मोहम्मद अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद और महात्मा गांधी के खिलाफ भी इस कानून (राजद्रोह) के तहत मुकदमे दर्ज किए गए थे।
स्वतंत्रता के पश्चात भी इसका कई बार प्रयोग किया गया है। यहां तक की वर्तमान सरकार के द्वारा भी इसका उपयोग किया जाता रहा है।
समय समय पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून की समीक्षा की है जिस से संबंधित महत्वपूर्ण वाद निम्नलिखित हैं-
केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य वाद 1962
इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा हालांकि न्यायालय ने सरकार की आलोचना को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है कहकर इसकी दुरुपयोग की संभावनाओं को सीमित कर दिया था।
इस वाद में निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल नारेबाजी करने पर धारा 124A के यानि राजद्रोह की धारा के तहत सजा नहीं दी जा सकती।
राजद्रोह कानून के पक्ष में तर्क
राजद्रोह का कानून क्यों महत्वपूर्ण है इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-
1) राजद्रोह कानून का मुख्य रूप से प्रयोग राष्ट्र विरोधी अलगाववादी तथा आतंकवादी तत्वों पर नियंत्रण रखने में किया जाता है, इसमें माओवादी विद्रोह, खालिस्तान आंदोलन और उत्तर-पूर्व के विद्रोह शामिल हैं।
2) राजद्रोह कानून निर्वाचित सरकार की स्थिरता को बनाए रखने में सहायता करता है।
3) 2018 में विधि आयोग की रिपोर्ट में धारा 124 A को मान्य रहने का सुझाव दिया गया।
4) जिस प्रकार भारत में न्यायपालिका की अवमानना करने पर दंड का प्रावधान है उसी प्रकार राजद्रोह के पक्ष में यह तर्क है कि निर्वाचित सरकार को भी अपनी अवमानना व अस्थिरता उत्पन्न करने वाले तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शक्तियां दी जानी चाहिए।
1) राजद्रोह के विरोध में पहला तर्क यह है कि यह औपनिवेशिक विरासत का अवशेष है और संविधान सभा के द्वारा भी इसको लेकर असहमति जाहिर की गई थी।
2) सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रूप से इसके विपक्ष में तर्क दिया जाता है कि एक लोकतंत्र के लिए जो कि जीवंत लोकतंत्र है उसके लिए असहमति और आलोचना आवश्यक है क्योंकि राजद्रोह शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है इसी वजह से मात्र असहमति और आलोचना को भी राजद्रोह के दायरे में लाया जा सकता है इसी के चलते बड़े पैमाने पर इसका दुरुपयोग भी देखा गया है जिसके चलते किसी भी राजनीतिक असंतोष के खिलाफ मुकदमा चलाने के उपकरण के रूप में इसे स्थापित किया जाने लगा है।
3) राजद्रोह कानून में यह भी देखा गया है कि इसका प्रयोग बहुत सारे व्यक्तियों पर किया जाता है जिनमें बहुत कम लोगों पर ही दोष सिद्धि हो पाती है। जैसे एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 से लेकर अब तक लगभग 400 के आसपास मामले दर्ज किए गए हैं, NCRB( नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के डेटा बताता है कि 2019 तक इसके तहत दोषी पाए गए व्यक्तियों की संख्या काफी कम है।
4) राजद्रोह के विपक्ष में अन्य तर्क यह है कि अनेक लोकतंत्रिक देशों ने इसे समाप्त कर दिया गया है, जैसे ब्रिटेन ने स्वयं इस धारा को अपने देश में 2009 में समाप्त कर दिया है जिसके द्वारा भारत में इसे बनाया गया था।
निष्कर्ष
इस प्रकार राजद्रोह कानून के पक्ष और विपक्ष को समझते हुए ही हमें इसके संदर्भ में सुझाव देने की आवश्यकता है, हमें ध्यान रखना होगा कि देश के लोकतांत्रिक कामकाज के लिए सरकारों को आलोचना के लिए खुला होना चाहिए, यह समय राजद्रोह कानून की आवश्यकता पर फिर से विचार करने का है जो मूल रूप से अत्याचारी शासन के द्वारा भारतीयों की आवाज को दबाने के लिए लाया गया था और वर्तमान में हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ को मना रहे हैं। इसलिए
इसका प्रयोग केवल गंभीर अपराधों में किया जाना चाहिए। साथ ही विधि आयोग की रिपोर्ट को भी ध्यान रखना होगा जिसने इस बात को स्थापित किया है कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता है और राजद्रोह के आरोप के दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा उपायों को स्थापित करने की भी आवश्यकता है, इसमें यह भी कहा गया है कि आईपीसी की धारा 124 A केवल उन मामलों में लागू की जानी चाहिए जब किसी कार्य के पीछे का उद्देश्य सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करना हो या फिर सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकना ।
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