मानक भाषा ( Standard Language ) किसे कहते हैं?
मानक भाषा से तात्पर्य ऐसी भाषा से है जो आदर्श श्रेष्ठ तथा परिनिष्ठित हो, भाषा का वह रूप जो अन्य भाषा सीखने वाले लोगों के लिए प्रयोग में लाया जाता है तथा जिसका पत्राचार, शिक्षा, सरकारी कामकाज एवं सामाजिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान में समान स्तर पर प्रयोग होता है, ऐसी भाषा को ही मानक भाषा कहते हैं।
बोली मानक भाषा कैसे बनती है?
भाषा के मानकीकरण में भाषा का विकास तीन सोपानों में होता है -
पहले यह बोली बनती है फिर भाषा बनती है और उसके बाद जन्म होता है मानक भाषा का
प्रथम सोपान : बोली-
प्रारंभिक स्तर पर भाषा का मूल रूप जो एक सीमित क्षेत्र में आपसी बोलचाल की भाषा के रूप में प्रयुक्त होता है उसे बोली कहा जाता है। इसका शब्द भंडार सीमित होता है तथा इसका कोई नियमित व्याकरण नहीं होता।
द्वितीय सोपान : भाषा
जब बोली कुछ विशेष भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व प्रशासनिक कारणों से अपना क्षेत्र का विस्तार कर लेती है तथा उसका लिखित रूप विकसित होने लगता है जिसके कारण उसके व्याकरणिक सांचे में डलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है तथा उसका प्रयोग पत्राचार, शिक्षा, व्यापार, प्रशासन आदि में होने लगता है तब वह बोली रहकर भाषा की संख्या प्राप्त कर लेती है।
तृतीय सोपान: मानक भाषा
यह भाषा का वह रूप होता है जब उसके प्रयोग का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाता है तथा वह एक आदर्श रूप ग्रहण कर लेता है।
भाषा के इसी रूप को भाषा का शब्द रूप, भाषा का उच्च स्तरीय रूप तथा भाषा का परिमार्जित रूप भी कहा जाता है।
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